अबोहर पांच पीर की दरगाह का इतिहास - विकिपीडिया हिंदी

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अबोहर पांच पीर की दरगाह का इतिहास - विकिपीडिया हिंदी






आभा नगरी (अबोहर) में स्थित हिंदू-मुस्लिम आस्था की प्रतीक पांच पीरों की दरगाह के अस्तित्व की कहानी जितनी प्राचीन है, उतनी ही दिलचस्प भी है। माना जाता है कि गुस्से में आकर यहां डेरा जमाए बैठे पीरों को ढूंढते हुए इनकी पत्नियां यहां पहुंची तो पीरों ने उन्हें शाप देकर भस्म कर दिया था। अब सदी से भी ज्यादा समय से यहां हजारों लोग शीश झुकाने दूरदराज के क्षेत्रों से आते हैं। हर वीरवार को पीरों की दरगाह पर मेला लगता है। पांच पीरों की दरगाह पर हर वर्ष सावन की 15 तारीख को वार्षिक मेला लगता है।


पांच पीरों की दरगाह के इतिहास के अनुसार धर्मनगरी में एक बहुत बड़ा टीला हुआ करता था, जो अब थेह के नाम से जाना जाता है। कभी यहां राजा आबू चंदनी का महल हुआ करता था, जो आबू नगरी व आभा नगरी कहलाता था। बताते हैं कि सूर्यवंशी राजा आबा चंदनी के बाद राजा हरीचंद ने राजपाठ संभाला। राजा हरीचंद की केवल एक बेटी ही थी। आखिरी समय में राजा को कुष्ठ रोग हो गया। राजा का कुष्ट रोग का इलाज करने के लिए शाही हकीमों ने बहुत जोर लगाया, लेकिन सब कुछ बेअसर साबित हुआ।


उस समय किसी ने राजा को सलाह दी कि मुल्तान (पाकिस्तान) के पांच पीरों के घोड़ों के खून से इस बीमारी का इलाज संभव है। शहजादी को जब इस बात का पता चला तो वह सूरतगढ़ के ठाकुर की मदद से पांच पीरों के पास गई और पांचों पीरों से उनके घोड़े मांगने लगी। जब मांगने पर पीरों ने अपने घोड़े न दिए तो शहजादी छल से पांचों पीरों के घोड़े यहां ले आई। इससे राजा की बीमारी तो ठीक हो गई, लेकिन कुछ अरसे बाद राजा की मौत हो गई। ठाकुर शहजादी से विवाह करके आबू नगरी में रहने लगा।


जब शहजादी पांचों पीरों के घोड़े आबू नगरी ले लाई तो पीरों ने बार-बार घोड़े लौटाने का संदेश भिजवाया, लेकिन ठाकुर व शहजादी ने घोड़े नहीं लौटाए। इस पर पांचों पीर अपनी पत्नियों को उनके पीछे न आने की नसीहत देकर खुद घोड़े लेने आबू नगरी आ पहुंचे और टीले पर डेरा डाल दिया। काफी समय बाद भी जब पीर वापस मुल्तान नहीं पहुंचे तो उनकी पत्नियां उनकी नसीहत को नजरअंदाज कर उन्हें ढूंढती हुई आबू नगरी आ पहुंचीं। पांच पीरों ने जब अपनी पत्नियों को देखा तो वह गुस्से से बेकाबू हो गए। उन्होंने उन्हें शाप देकर भस्म कर दिया।


शहजादी की ओर से घोड़े न लौटाने की जिद से गुस्साए पांच पीरों ने आबू नगरी को भी नष्ट होने का श्राप दे दिया, लेकिन उसका कोई असर न हुआ। जब पांच पीरों ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा तो उन्हें पता चला, कि उनका मामा अलीबख्श अपनी अदृश्य शक्ति से आबू नगरी को बचा रहा है। इस पर पीरों ने अपने मामा को धिक्कारा तो वह नगर छोड़कर चला गया। उसके जाते ही आबू नगरी राख हो गई। महल व घर खंडहर में तब्दील हो गए। इन्हीं पांच पीरों और उनकी पत्नियों की मजारें यहां लोगों की श्रद्धा का केंद्र हैं।

ये हैं पांच पीरों के नाम


1. दाता बख्श
2. शेख बाबा फरीद शकरगंज
3. बाहा उद्दीन जकारिया
4. लाल शहबाज कलंदर
5. सैय्यद जलालुद्दीन भूखड़ी


हिंदू-मुस्लिम लोगों की श्रद्धा का केंद्र


चाहे यह पांच पीर मुस्लिम थे, लेकिन यहां पर अबोहर, आसपास के ईलाके सहित पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से श्रद्धालु नतमस्तक होने के लिए पहुंचते हैं। उसके पीछे सबसे बड़ी वजह यहां पर आकर कोई भी मन्नत मांगने पर पूरी होती है। पांच पीरों की दरगाह पर हिंदू-मुस्लिम व अलग-अलग जातियों के लोग माथा टेकने के लिए आते हैं। एक अनुमान के अनुसार पांच पीरों की मजार पर हर वीरवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और जब यहां वार्षिक मेला होता है तो दरगाह पर माथा टेकने वाले श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी लाईनें लग जाती है।


दोस्तों ये है पांच-पीरों की दरगाह का इतिहास, इसलिए पांच-पीरों की मजार लोगों की श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है। ज्यादा जानकारी के लिए विकिपीडिया हिंदी को Follow करें. जय पीरां दी.....

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