संत जरनैल सिंह जी भिंडरांवाले (History of Sant Jarnail Singh Bhindrawale)

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 संत जरनैल सिंह जी भिंडरांवाले (History of Sant Jarnail Singh Bhindrawale)



जरनैल सिंह भिंडरांवाले : ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਭਿੰਡਰਾਂਵਾਲੇ - पंजाब के सिख धर्म के दमदमी टकसाल के प्रमुख संत बाबा जरनैल सिंह भिंडरांवाले का नाम देश और विदेश का कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो नहीं जानता होगा। आज भी पंजाब में संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले को तीर वाला बाबा कह कर संबोधित किया जाता है। पंजाब के लोगों द्वारा उनकी फोटो घरों और अपने वाहनों पर लगाई जाती है।


संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले का जन्म का नाम जरनैल सिंह बराड़ था। उनका जन्म 12 फ़रवरी 1947 को हुआ था और 6 जून 1984 को उन्होंने शहीदी दी थी। आज भी सिख धर्म के लोगों द्वारा भिंडरांवाले संत के शहीदी दिवस पर अखण्ड पाठ और विभिन्न कार्यक्रम किये जाते है। सिखों द्वारा ठंडे मीठे पानी की शबीले भी लगाई जाती हैं।



जरनैल सिंह भिंडरांवाले



■ जन्म : 12 फ़रवरी 1947


■ स्थान : रोदे, मोगा ज़िला, पंजाब


■ शहीदी : 6 जून 1984 (उम्र 37)


■ स्थान : अमृतसर, पंजाब (भारत)


■ जातीयता : पंजाबी


■ नागरिकता : भारत


■ व्यवसाय : दमदमी टकसाल का प्रमुख


■ धार्मिक मान्यता : सिख धर्म


■ जीवनसाथी : प्रीतम कौर


■ बच्चे : इशार सिंह और इंदरजीत सिंह


■ माता-पिता : जोगिंदर सिंह और निहाल कौर


■ पुरस्कार : शहीद का ख़िताब (अकाल तख़्त के अनुसार)



सिख समुदाय के बीच उन्हें ख़ास तौर पर ग्रामीण इलाक़ों में ज़्यादा स्वीकार्यता मिली। उनके मिथक की शुरुआत वर्ष 1981 में हुई जब वे मुंबई में पुलिस को धोखा देकर अमृतसर में मेहता चौक पर स्थित अपने मुख्यालय पहुँचे। दमदमी टकसाल उनके इसी मिथक को आधार बनाकर ऑपरेशन ब्लू स्टार के दो दशक बाद तक उनके ज़िंदा होने की बात का प्रचार करता रहा।


वर्ष 1981 में संत भिंडरावाले का इंटरव्यू किया गया था जिसे एक भारतीय अंग्रेज़ी अख़बार ने इस शीर्षक से छापा था - 'शहादत की तलाश में...'. उस समय उनके सिख समाज में सक्रिय होने और प्रमुखता में आने का वो पहला साक्षात्कार था। उन्होंने जिस रास्ते को चुना, वो उन्हें उस अंत तक ले गया जिसे उनकी शायद बहुत पहले से तलाश थी।



उनकी ज़िंदगी मितव्ययी थी और वो दोहरेपन में विश्वास नहीं करते थे। वो ऑपरेशन के समय अकाल तख़्त से भाग सकते थे, लेकिन उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। उनका व्यक्तित्व इससे और भी शक्तिशाली होकर निकला।

पैसा और सत्ता उन्हें भ्रष्ट नहीं बना सका और यही बात एसजीपीसी अध्यक्ष गुरुचरण सिंह टोहड़ा के बारे में कही जा सकती है, जिन्होंने उन्हें कई कठिन मौक़ों पर नैतिक समर्थन दिया था, चाहे वे उनके रास्ते से सहमत नहीं थे।

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